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वर्गिकी किसे कहते हैं | वर्गिकी क्या है ?
- Taxonomy (वर्गिकी) दो शब्दों से मिलकर बना है Taxi + Nomy, Taxo का अर्थ होता है समूह (Group) और Nomy का अर्थ होता है नाम रखना।
- जीव विज्ञान का की ऐसी शाखा जिसमे जीवो के लक्षण के आधार पर उनका समूह बनाते हैं और उस समूह का नाम रखते हैं उन्हें Taxonomy (वर्गिकी) कहा जाता है।
Taxonomy (वर्गिकी) 3 चरणों में पूरा होता है
1. Identification (पहचान)
2. Classification ( वर्गीकरण)
3. Nomenclature ( नामकरण)
- प्रतियोगी परीक्षाओं में पहचान I(dentification) से प्रश्न नहीं बनते हैं इसलिए आइए वर्गीकरण को विस्तार (Classification) से समझते हैं।
Classification (वर्गीकरण) :
कार लेनियस (Carl Linnaeus) ने वर्गीकरण पर पहली किताब सिस्टेमा नेचुरी (Systema Naturea) लिखा इस किताब में जीवो के दो भाग किए पहला पादप जगत (Plant Kingdom) और दूसरा जंतु जगत (Animal Kingdom) पादप जगत में सभी पेड़ पौधों (Plant) को रखा जबकि जंतु जगत में सभी जीवो (Animal) को रखा।
वर्गिकी का पिता किसे कहते हैं ?
- दो जगत का वर्गीकरण (2 Kingdom classification) कार्ल लीनियस ने दीया।
- कार्ल लीनियस को वर्गीकरण के पिता भी कहा जाता है।
5 जगत वर्गीकरण किसने दिया ?
आर.एच. व्हिटेकर (R.H. Whittaker) ने 5 अलग-अलग तरीके से जीवो को वर्गीकृत किया। इसी को 5 जगत का वर्गीकरण (Five Kingdom Classification) कहा जाता है।
आर.एच. व्हिटेकर (R.H. Whittaker) विकास करने के क्रम में जीवों का वर्गीकरण इस प्रकार किया
- Monera (मोनेरा )
- Protista (प्रोटिस्टा)
- Fungus (कवक)
- Plantae (पादप)
- Animalia (प्राणी)
मोनेरा जगत क्या है ?
Monera Kingdom ( मोनेरा जगत)
इस वर्ग के सभी जीव जलीय (Aquatic) होते हैं अर्थात पानी में रहने वाले।
मोनेरा जगत के लक्षण ?
- प्रोकैरियोटिक (Prokaryotic) होते हैं।
- एक कोशिकीय (Unicellular)होते हैं।
- इसमें सत्य केंद्र का अभाव होता है।
- इसमें झिल्ली युक्त कोशिकांग नहीं पाए जाते हैं। …
- इनमें गुणसूत्र नहीं पाए जाते हैं।
- माइक्रो प्लाज्मा को छोड़कर अन्य सभी सदस्यों में कोशिका भित्ति पाई जाती है।
- इनमें भित्तिकाए नहीं पाई जाती है। इनमें राइबोसोम 70 S प्रकार का होता
मोनेरा जगत का उदाहरण :
- जीवाणु और नील हरित शैवाल (Blue Green algae)
इस वर्ग के जीव अपना पोषण (Nutrition) कीमोसिंथेसिस (Chemosynthesis) अर्थात रसायनों के संश्लेषण से प्राप्त करते हैं।
यह कई बार परजीवी (Parasitic) भी होते हैं।
Protista (प्रोटीस्टा)
- इस वर्ग के जीव एक कोशिकीय, जलीय और यूकैरियोटिक होते हैं।
- जैसे : सभी प्रकार के प्रोटोजोआ (Protozoa)
प्रोटोजोआ के प्रकार | प्रोटोजोआ क्या है
1.अमीबा, 2. प्लाज्मोडियम, 3. यूग्लीना, 4. पैरामीशियम, आदि
- अमीबा की आकार लगातार बदलता रहता है और यह पानी में रहते हैं।
- मलेरिया प्लाज्मोडियम से होता है जो मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से फैलता है।
- यूग्लीना को पादप तथा जंतु के बीच की कड़ी कहा जाता है।
- यूग्लीना में पादप तथा जंतु दोनों के गुण होते हैं।
- इसमें अलैंगिक जनन होता है जिसमें यह अपने शरीर को ही खंड खंड कर के बहुत सारे यूग्लीना बना लेते हैं।
- यह स्वपोषी होते हैं और सूर्य के प्रकाश में फोटोसिंथेसिस करते हैं।
- पैरामीशियम स्लीपर जैसा दिखता है इसलिए इसको स्लीपर एनिमल भी कहते हैं। यूग्लीना स्वपोषी तथा अमीबा पैरामीशियम प्लाज्मोडियम यह तीनों परपोषी होते हैं।
कवक (Fungus) क्या है | कवक के मुख्य लक्षण
कोई भी चीज खाने पीने की अगर बासी हो जाती है तो उस पर कुछ फफूद जैसा दिखने लगता है ये कवक होतें हैं। कवक नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलता है। यह बहू कौशिकी और यूकैरियोटिक होते हैं।
कवक के उदाहरण :
- म्यूकर : जहां कुछ सड़ता है वहां म्यूकर हो जाता है।
- यिस्ट : यिस्ट फुलाने में प्रयोग होता है। जैसे हम चना को रात में पानी में भिगो देते हैं और सुबह खुल जाता है इसका कारण यिस्ट ही होता है।
सभी कवक परपोषी होते हैं।
लगभग सभी प्रकार के कवक में वाह्य कोशिकीय पाचन (Extra-cellular digestion) होता है।
मृतोपजीवी (Saprophytic mode) : सड़े-गले पदार्थों से जो भोजन लेते हैं वह मृतोपजीवी कहलाते हैं। जिसका कवक (Fungus) एक अच्छा उदाहरण है । मृतोपजीवी जीवो में दो प्रकार के पाचन होते हैं
- अंता कोशिकीय पाचन ( Intra-Cellular Digestion) : जिन जीवों में पाचन की क्रिया बॉडी के अंदर होता है उन्हें अंतः कोशिकीय पाचन कहते हैं।
- वाह्य कोशिकीय पाचन (Extra-Cellular Digestion ) : जिस जीवों में पाचन बॉडी के बाहर होता है उन्हें वाह्य कोशिकीय पाचन कहा जाता है।
पादप (Plantae)
ऐसे जीव होते हैं जो सर्वव्यापी यूकैरियोटिक और बहुकोशिकीय होते हैं। इनमें प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। यह जीव स्वपोषी होते हैं । इन प्रकार के जीवों में सैलूलोज की बनी कोशिका भित्ति उपस्थित होती है। अर्थात पादप जगत के जीवो के कोशिका भित्ति सैलूलोज की बनी होती है।
Key Point : जीवाणुओं में कोशिका भित्ति एमिनो एसिड और कार्बोहाइड्रेट का बना होता है। कवक में कोशिका भित्ति काइटी का बना होता है। |
पादप जगत का वर्गीकरण :
- शैवाल (Algae)
- ब्रायोफाइटा(Bryophyte )
- टेरिडोफाइटा (Pteridophyte )
- अनावृतबीजी (Gymnosperms )
- आवृत्तबीजी (Angiosperm)
- शैवाल तालाबों में पानी वाले जगहों पर पाए जाते हैं।
- दलदली जगहों पर ब्रायोफाइटा पाए जाते हैं। इसीलिए ब्रायोफाइटा को पादप जगत का उभयचर कहा जाता है।
- शैवाल ब्रायोफाइटा टेरिडोफाइटा इन तीनों को निम्न क्लास कहा जाता है। यह तीनों एक थैलस (Thallus) के समान दिखाई देते हैं। थैलस (Thallus) : ऐसे पादप जिनके जड़ तने पत्तियां आदि को अलग-अलग नहीं किया जा सकता उन्हें थैलस कहा जाता है।
- ऐसे पौधे जिन के बीज के ऊपर किसी भी तरह की आवरण नहीं होता है उन्हें अनावृतबीजी कहते हैं। जैसे पाइनस साइकस सागो आदि
- ऐसे पौधे जिनमें फूल दिखाई देते हैं और बीज के ऊपर आवरण होता है उसे अनावृतबीजी कहते हैं जैसे : आम, कैक्टस आदि।
- अनावृतबीजी और आवृत्तबीजी दोनों को पादप जगत में उच्च क्लास कहा जाता है।
जंतु जगत | जंतु जगत के लक्षण
- ये जीव सर्वव्यापी बहुकोशिकीय और यूकैरियोटिक होते हैं।
- इन जीवों के कोशिका के चारों तरफ कोशिका भित्ति नहीं होती है।
- ये जीव परपोषी होते हैं अर्थात अपने भोजन के लिए दूसरों पर आश्रित रहते हैं।
जंतु जगत का वर्गीकरण
जंतु जगत को दो भागों में बांटा गया है ।
- कशेरुकी प्राणी (Vertebrate)
- अकशेरुकी प्राणी (Invertebrate )
कशेरुकी प्राणी (Vertebrate)
- इस प्रकार के जीवो में रीड की हड्डी (Backbone) होता है
- रीढ़ की हड्डी में एक पदार्थ भरा होता है जिसे नोटोकार्ड (Notochord) कहते हैं।
- शुरू में जब जीव छोटा होता है तब यह नोटोकार्ड बहुत ही नरम होता है और उम्र के साथ-साथ यह कठोर होते जाता है।
- नोटोकार्ड एक सीमेंट की तरह कार्य करता है।
- यही नोटोकार्ड आगे विकास करके मेरुदंड (Back Bone) बनाता है।
- उदाहरण : सांप
- इस वर्ग के जीवो में ग्रसनी गलफड़े (Pharyngeal gills) उपस्थित होते हैं।
शेरुकी प्राणियों का विकास
- कशेरुकी प्राणियों में पुंछ (Post Anal Tail) उपस्थित होता है और ह्रदय उदरीय पृष्ठ (आगे की ओर )के तरफ उपस्थित होता है।
- कशेरुकी प्राणियों का विकास मत्स्य (Fish) से शुरू हुई है।
- कुछ मत्स्य का विकास उभयचर में हुआ इस उभयचर से सरीसृप (Reptiles) का विकास हुआ और सरीसृप के विकास से पक्षियों का विकास हुआ और पक्षियों से विकास स्तनधारियों में हुआ।
स्तनधारियों का अगर विकास क्रम
मत्स्य वर्ग (Fish) :
- मत्स्य वर्ग (Fish) के 2 चेंबर ह्रदय होता है।
- सभी प्रकार के मत्स्य जैसे डॉग फिश, शार्क
- मत्स्य वर्ग पानी में घुले हुए ऑक्सीजन को अपने गलफड़े द्वारा सांस लेते हैं।
उभयचर (Amphibians) :
- यह फेफड़े, त्वचा , गलफड़े द्वारा सांस लेते हैं।
- उदाहरण : मेंढक, salamanders etc.
- उभयचर के तीन चैंबर्ड ह्रदय होता है।
सरीसृप (Reptiles) :
- सांस मुख्यतः फेफड़े द्वारा लेते हैं।
- उदाहरण : मगरमच्छ, छिपकली सांप, आदि
- सरीसृप (Reptiles) में 3 चेंबर ह्रदय होता है लेकिन क्रोकोडाइल फैमिली में 4 चेंबर दर्द होता है उदाहरण के लिए घड़ियाल। अतः घड़ियाल सरीसृप होते हुए भी 4 चेंबर का ह्रदय (Hurt) होता है।
पक्षी वर्ग ( Aves / Birds) :
- सभी पक्षी वर्ग में आने वाले प्राणी अपने फेफड़े से सांस लेते हैं। उदाहरण के लिए सभी प्रकार के पक्षी ।
- पक्षी (Ave/Birds) में 4 चेंबर का ह्रदय होता है।
स्तनधारी (Mammals) :
- सभी प्रकार के स्तनधारी अपने फेफड़े से सांस लेते हैं।
- इनका आंतरिक तापमान समान रहता है।
- उदाहरण : डॉल्फिन व्हेल मछली, सी फिश (Sea Fish)
- सभी स्तनपाई (Mammals) में 4 चेंबर हृदय होता है।
अकशेरुकी (Non-Chordata)
अकशेरुकी जीवों का वर्गीकरण
1. प्रोटोजोआ (Protozoan)
2. मेटाजोवा (Metazoan)
1. प्रोटोजोआ (Protozoa) :
- यह एक कोशिकीय जीव होते हैं।
- प्रोटोजोआ में एक ही संघ (Group) आता है जिसको प्रोटोजोआ संघ (Protozoa Phylum) कहते हैं ।
प्रोटोजोआ संघ (Protozoa Phylum) :
- यह एक कोशिकीय प्रोकैरियोटिक जलीय जीव होते हैं।
- यह स्वपोषी होते हैं परंतु कुछ प्रोटोजोआ परजीवी भी होते हैं।
स्वपोषी प्रोटोजोआ :
1. अमीबा (Amoebas)
2. यूग्लीना ( Eugenia)
3. पैरामीशियम (Paramecium)
परजीवी प्रोटोजोआ :
1.एंटेमीबा हिस्टॉलिटिका (Entamoeba histolytica)
2. ट्रिपनोसोमा (Trypanosoma) : ट्रिपनोसोमा से स्लीपिंग सिकनेस (Sleeping Sickness) की बीमारी होती है जो ट्राई-साई-साईं नामक मक्खी से फैलता है। ये बीमारी सबसे पहले अफ़्रीका में देखा गया इसीलिए इसको अफ्रीका स्लीपिंग सिकनेस भी कहा जाता है।
3. प्लाज्मोडियम (Plasmodium)
2. मेटाजोवा (Metazoan)
1. पोरिफेरा संघ (Phylum Poriferan) | पोरिफेरा संघ के लक्षण
- Porifera दो शब्दों से मिलकर बना है Pori + Fera Pori का अर्थ होता है Pores (छिद्र) और Fera का अर्थ होता है Bearing (धारण करना)
- ऐसे जीव जिनके पूरे शरीर के अंदर छोटे-छोटे छिद्र होते हैं इस प्रकार के जीव को पोरिफेरा समूह में रखा जाता है।
- इनके पूरे शरीर पर छोटे-छोटे छिद्र होने के कारण स्पंज के जैसा पानी बहुत ही आसानी से इनके अंदर चला जाता है और बाहर भी निकल आता है इसलिए इस प्रकार के जंतुओं को जंतु जगत का स्पंज (Sponges of Animal Kingdoms) भी कहा जाता है।
- इनमें अलैंगीक (Asexual) जनन होता है।
पेरीफेरल संघ के उदाहरण :
1. साइकोन (Sicyon)
2. हायलोनेमा (Hyalonemma)
2. निडेरिया संघ (Phylum Cnidaria)
- इस संघ को सीलेंट्रेटा भी कहा जाता है।
- यह जलीय जीव (Aquatic) होते हैं।
- इनकी सममिति (Symmetry) रेडिकल (Radical) होती है। रेडिकल समिति का मतलब यह है कि इनको कहीं से भी काटने पर एक जैसा ही दिखाई देते हैं।
- पोषण (Nutrition) : नीडेरिया समूह के सभी जीव मांसाहारी (Carnivorous) होते हैं।
नीडेरिया समूह के जीवों के उदाहरण :
- हाइड्रा (Hydra)
- ओबेलिया (Obelia)
- पोरपीटा (Por pita)
4. टीनोंफोरा संघ (Phylum Ctenophore)
यह समुद्री प्राणी होते हैं।
इनकी पूरा शरीर पारदर्शी होता है।
इनका सिमेट्री लेटरल सिमेट्री होता है। है कि इनके बॉडी के अंदर हल्की चमक होती है।
टीनोंफोरा के उदाहरण : जेलीफिश (Jelly-Fish)
5. संघ प्लेटीहेलमाइंथेस (Phylum Platyhelminthes)
- प्लेटीहेलमाइंथेस (Platyhelminthes) दो शब्दों से मिलकर बना है Plate + Helminths जिसमें Plate का अर्थ होता है चिपटा (Flat) और helminths का अर्थ क्रीमी होता है । अर्थात इस संघ में ऐसे जीवों को रखा गया है जो चिप्टे होते हैं, क्रीमी का अर्थ है रेंग कर चलने वाले ।
- इस संघ के सभी जीवों में बाईलिटरल (Bilateral) सममित होता है। बाइलिटल सममिति का अर्थ यह होता है कि इनको काटने पर बराबर भागों में कटेंगे और बायां और दायां वाला हिस्सा दर्पण प्रतिबिंब के तरह दिखाई देगा।
- इस संघ के जीवो में लैंगिक और अलैंगिक दोनों प्रकार के जनन होते हैं।
- इस संघ के जीव द्विलिंगी (Bisexual) होते हैं। अर्थात इन जीवों में नर जनन अंग और मादा जनन अंग दोनों ही मौजूद होते हैं।
प्लेटीहेलमाइंथेस जीवों के उदाहरण :
1. टीनिया (Taenia) :
- इसको फीता कृमि (Tape worm)भी कहा जाता है।
2. फेसियोला (Fasiola) :
- इसे लीवर हुकवर्म (Liver-hook worm) भी कहा जाता है।
- यह जीव मानव के लीवर से चिपक जाता है और रोग फैलाता है।
निमेटोडा संघ (Phylum Nematoda)
- इसको गोलाकार क्रीमी भी कहते हैं। यह बाई लेटर सिमेट्री प्रदर्शित करता है। इस संघ के जीवो में नर और मादा के दो अलग-अलग बॉडी होते हैं। अर्थात कहने का अर्थ है कि नर और मादा युग्मक अलग-अलग होते हैं। इस संघ के जीवन में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) होता है।
नीमेटोडा संघ के उदाहरण :
1. एस्कैरिस (Ascaris) : यह दूषित भोजन के माध्यम से मनुष्य के शरीर में पहुंच जाता है और मनुष्य के आंत (Intestine) को प्रभावित करता है।
2. वाउचेरिया वेंक्राफ्ट (Wuchereria-Bancrofty) : यह हाथी पांव की बीमारी फैलाता है।
ऐनेलिडा संघ (Phylum Annelida) :
- इस क्रीमी की पूरी बॉडी में खंडी आकृति दिखाई देती है अर्थात छोटे-छोटे खंडों में बटें होते हैं। इस संघ के जीवो में बाइलिटरल (Bilateral) सममिति देखने को मिलता है।
ऐनेलिडा संघ के उदाहरण :
1. केचुआ (Earthworm)
2. जोंक (Leech)
मोलस्का संघ (Phylum Mollusca)
- इस संघ के जीवो का शरीर बहुत ही ज्यादा मुलायम होता है। अपने शरीर को बचाने के लिए कैलशियम कार्बोनेट का उत्सर्जन करते हैं जो इनके शरीर के चारों तरफ आवरण बना लेता है जिससे इनका शरीर सुरक्षित रहता है।
- मोलस्का संघ के जीव परपोषी होते हैं। और इनकी सममित द्विपक्षीय होती है। यह जलीय (Aquatic) होते हैं जो समुद्री जल (Marin-water) में पाए जाते हैं।
मोलस्का संघ के जीवो का उदाहरण :-
1. शंख (Apple snail)
2. घोघा (Land snail)
3. मोती बनाने वाली सीप (Pearl oyster)
4. ऑक्टोपस (Octopus)
संघ आर्थोपोडा (Phylum Arthropoda)
- आर्थ्रोपोडा दो शब्दों से मिलकर बना है Arthro + Poda जिसमें आर्थ्रों का अर्थ होता है संधि और Poda का अर्थ है पैर अर्थात जिनके पैर टेढ़ी-मेढ़ी खंडों में दिखाई देते हो इस प्रकार के जीवो को आर्थोपोडा संघ में रखा जाता है।
- आर्थोपोडा संघ जंतु जगत का सबसे बड़ा संघ है अर्थात इस संघ में जीवों की संख्या सर्वाधिक है। इसके अलावा मोलस्का संघ दूसरे नंबर का सबसे बड़ा संघ है।
- आर्थोपोडा संघ के जीव परपोषी होते हैं और द्विपक्षीय समिति को प्रदर्शित करते हैं।
- जितने भी कीट और मक्खी होते हैं वह आर्थोपोडा संघ में आते हैं।
आर्थ्रोपोडा संघ के जीवो का उदाहरण :
1. तितली (Butterfly)
2. काकरोच (Cockroach)
3. झींगा (Prawn)
इकाइनो डर्मेटा संघ (Phylum Echinodermata)
- इकाईनोडर्मेटा दो शब्द से मिलकर बना है Echino + Derm जिसमें Echino का अर्थ है कांटे Derm का अर्थ होता है त्वचा अर्थात ऐसे जीव जिनके शरीर पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं वे सभी इकाईनोडर्मेटा संघ में आते हैं।
- इस संघ के जीव समुद्रों में पाए जाते हैं।
इकाइनो डर्मेटा संघ के उदाहरण
1. स्टार फिश (Star Fish)
2. सी-लिली (Sea lily)
3. सी कुकुंबर (Sea-Cucumber)